मेदिनीपुर पूर्व: पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी (दीदी) के लिए लोगों के विश्वास का अंदाजा तब लगाया जा सकता है, जब ममता सरकार कई विपरीत परिस्थितियों के बावजूद तीसरी बार सत्ता में आई. जीत के बाद राज्य सरकार जहां लगातार विकास कार्यों में लगी हुई है, वहीं कई ऐसे पिछड़े इलाके हैं जहां सरकारी अधिकारियों की लापरवाही से लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
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पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर पूर्वी जिले के उदयपुर गांव में स्थित ज़िकोरिया बांध पर बांस के गोले से बने ‘डोम घाट’ पुल की कहानी देश की आजादी के बाद से जस की तस बनी हुई है. इस जर्जर और जानलेवा पुल की चपेट में आने से कई लोगों की जान चली गई है। इसके बावजूद भी सरकारी विभाग कान में रुई लेकर आंखें बंद रखे हुए है। बड़े नेताओं ने स्थानीय चुनावों में कई बार वादे किए हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद वे कम ही नजर आते हैं।
सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाने और नेताओं के झूठे वादों से तंग आकर अब लोगों ने अपनी बात सीधे राज्य की मुखिया ममता बनर्जी तक पहुंचाने का फैसला किया है. ग्रामीणों का मानना है कि ‘ममता दीदी’ के अलावा उनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं है।
स्थानीय निवासी एवं सामाजिक कार्यकर्ता एनुल रहमान ने ‘द गांधीगिरी’ टीम से बात करते हुए बताया कि गांव की आबादी करीब पांच लाख है. शहर तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। वहीं डोम घाट पर बने अस्थाई बांस बॉल ब्रिज से गुजरना बेहद खतरनाक है। कई बार पुल टूट चुका है और 17 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। बाढ़ के समय स्थिति और भी खतरनाक हो जाती है।
रहमान ने कहा कि, ”अस्थायी पुल के कारण जान-माल का काफी नुकसान हुआ है. कई बार बाढ़ के दौरान पुल टूट चुका है। स्थानीय नेता चुनाव के दौरान हर बार स्थायी पुल बनाने का वादा करते हैं। हम सरकारी कार्यालयों में भी पुल निर्माण के लिए आवेदन देते थक चुके हैं। अब पुल की समस्या किसी तरह मुख्यमंत्री तक पहुंचानी है। हमें विश्वास है कि केवल ममता दीदी ही पुल का निर्माण करवा सकती हैं। स्थायी पुल बन जाने से लोग आसानी से शहर जा सकेंगे और कोई खतरा नहीं है।”
‘द गांधीगिरी’ टीम के साथ बात करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता ऐनुल रहमान, रजब अली कादरी, नेसर अली, उमर अली, हकीम अली, अजीमुल रहमान, समीरुद्दीन, साकील अली, जलालुद्दीन, रंजीत अदक, सोची नंदी शी, लैलून नेहर बीबी, शहादत अली और मोंटू अली मौके पर मौजूद थे।